चाहत - भय - और स्वपन - गुरूजी श्री अर्णव के मनन !

गुरु जी श्री अर्णव का कहना है कि जीवन में सपने देखिए, बड़े सपने देखिए, लेकिन सपनों का अपना एक चरित्र होता है, जिसे समझना आवश्यक है, अन्यथा सपने फलीभूत नहीं होंगे। 

    प्रत्येक सपने को दो हिस्सों में विभक्त कर इसका विश्लेषण करना चाहिए ---
पहला, चाहत
दूसरा, डर 

    सपनों का फलक जितना व्यापक होगा, चाहत की सीमा उतनी ही बड़ी होगी।

    आम आदमी सपनों के माध्यम से जितनी बड़ी चाहत प्राप्त करना चाहता है, उसे हासिल करने में आनेवाली चुनौतियां उसके अंदर उतना ही बड़ा डर पैदा करती हैं। 

    स्वप्नदर्शी को निर्भिक होना होगा। उसको अपने अंदर यह आत्मविश्वास पैदा करना होगा कि
चाहत यानी अभिष्ट के मार्ग में ऐसी कोई चुनौती नहीं जिसे वह परास्त नहीं कर सकता है।

   चाहत और डर जब एकसाथ मिल जाएंगे, तो सपने अमंगलकारी हो जाते हैं। युवा वर्ग में तो ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसे बड़े सपने देखने हैं, जिसके लिए उसे भयमुक्त होना अनिवार्य है। गुरु बड़े सपने देखने का हौसला देते हैं और डर से मुक्त होने की राह बताते हैं। 

   गुरु एक यात्री होता है, उसकी कोई निर्धारित मंजिल नहीं होती है, केवल पड़ाव होते हैं। ईश्वर प्रदत्त आखिरी सांस तक मानव-कल्याण के लिए उसके विचारों का प्रवाह बना रहता है, आध्यात्म से प्रेरित कर्म के मार्ग पर वह सदैव गतिशील रहता है। उसके सपने या यात्रा ' स्व ' के लिए नहीं,' वयम ' के लिए होते हैं। जब निज की चाहत नहीं होती है, तब डर के समावेश का नहीं होना स्वाभाविक है। यात्री यानी गुरु चलता रहता है, प्रत्येक पड़ाव पर मानव-कल्याण करते हुए अगले सफर पर चल पड़ता है।
गुरूजी श्री अर्णव वर्तमान में रत्न भ्रमांड / जेमस्टोन यूनिवर्स के प्रधान संघरक्षक हैं 

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